गुरुवार, 23 जुलाई 2009
सनातन का अर्थ परिवर्तन भी हो सकता हे?
वेसे तो सनातन का अर्थ ही यही हे की जो जेसा हे जितना हे उतना और वेसा ही रहे दुसरे भाव में कहा जासकता हे की जो सच हे वही सनातन हे सच को किसी का अभाव नही होता ,झूठ का कोई एक पांव नही होता झूठ को सच साबित करना टेड़ी खीर के समान हो ता हे परन्तु सच को किसी परिवर्तन की आवश्यकता ही नही होती जेसे सूर्य प्रति दिन उदय होता हे असत्य हे बदल कभी कभी बेचारे को उदय ही नही होने देते सच तो यह हे की यदि सूर्य उदय ही न हो तो प्राणियों का जीवन -अस्तित्व खतरे में पड़ जाए गा अर्थात सूर्य उदय होता हे कहा जाता हे जो सच ही हे सत्य ही ईश्वर हे अर्थात ईश्वर ही सनातन हे और ईश्वर के द्वारा रचे गये धर्म नियम सनातन धर्म के सचे नियम हें शास्त्रीय -लोकिक शुभ की इछा करने वालों को इन दोनों का ही पालन करना चाहिए इनमेसे किसी का भी त्याग उचित नही होगा ग्राम धर्म-जाती धर्म-देश धर्म-कुल धर्म -सब का आदर करना चाहिए इस में किसी भी धर्म का उलंघन करना अनुचित हे क्यों की दुराचारी दुनिया में निंदा का पात्र होता हे उसे तो कष्ट भोगने ही होते हें मुसीबत उसका साथ नही छोड़ती ///\जो धर्म अर्थ कामसे हीन हों और धर्म भी लोक से विरुद्ध हो तो वह भी सुख करी नही हो सकता दुनिया में कई पवित्र शास्त्र हें किस के आधार पर निश्चय किया जावे ?धर्म मार्ग के निर्णय करने वाले कितने प्रमाण हें? जेसे वेदों का नेत्र ज्योतिष को मन जाता हे उसी प्रकार श्रुति -और -स्मृति ये दो नेत्र -पुराणको हृदय कहा गया हे इन तीनों कई वाणी ही धर्म हे एनी किसी कई नही यदि तीनो में पर्स पर भेद हो तो श्रुति के वचन प्रमाण होंगे यदि श्रुति और स्मृति दोनों में ही विरोध हो टीबी स्मृति को उतम माना jana चाहिए अब यदि श्रुति ही दोनों बैटन का स्म्र्त्न करती हो तभी उन दोनों को ही धर्म मनलेना चाहिए जब स्मृति में दो प्रकार के वचन मिलें तब उस विषय में अलग-अलग कल्पना कर लेनी चाहिए दूसरा सिधांत यह हे कई जिसे ऋषि गणधर्म कहते हें उसी को धर्म रूप से ग्रहण कर लिया जावे .........................................................?
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