रविवार, 27 दिसंबर 2009

सड़क किनारे जिस रेहड़ी वाले से मैं सब्जी खरीद रहा हूं, वहीं अचानक एक पुलिसवाला आकर रुकता है  वो इशारे से सब्जीवाले को साइड में बुलाता है। वापस आने पर जब मैं सब्जीवाले से बुलाने की वजह पूछता हूं, तो वो पहले कुछ हिचकिचाता है। फिर कहता है कि यहां खड़े होने के ये (पुलिसवाला) रोज तीस रुपये लेता है। करूं भी क्या, मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं है। दुकान यहां किराए पर ले नहीं सकता और रेहड़ी लगानी हैं, तो इन्हें पैसे देने ही होंगे।
घर आते समय जब मैं पूरे वाकये को याद कर रहा था तो मन पुलिसवाले के लिए श्रद्धा से भर गया। यही लगा कि आज तक किसी ने पुलिस को ठीक से समझा ही नहीं। हो सकता है कि ऊपर से देखने पर लगे कि पुलिस वाले भ्रष्ट हैं, गरीब रेहड़ी वालों से पैसे ऐंठते हैं, मगर यह कोई नहीं सोचता कि अगर वे वाकई ईमानदारी की कसम खा लें तो इन गुमटी-ठेलेवालों का होगा क्या? पुलिस का ये 'मिनी भ्रष्टाचार' तो लाखों लोगों के लिए रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था है। जो सरकार इतने वर्षों में इन लोगों के लिए काम-धंधे का बंदोबस्त नहीं कर पाई, उनसे दस-बीस रुपये लेकर पुलिसवाले ही तो इन्हें संभाल रहे हैं।

                                                              इतना ही नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में पुलिसवाले अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं, मगर हममें से किसी ने आज तक उन्हें सराहा ही नहीं। मसलन, पुलिसवालों पर अक्सर इल्जाम लगता है कि वे अपराधियों को पकड़ते नहीं है। मगर ऐसा कहने वाले सोचते नहीं कि जितने अपराधी पकड़े जाएंगे उतनों के खिलाफ मामले दर्ज करने होंगे। जितने मामले दर्ज होंगे उतना ज्यादा अदालतों पर काम का बोझ बढ़ेगा। जबकि हमारी अदालतें तो पहले ही काम के बोझ तले दबी पड़ी हैं। ऐसे में पुलिसवाले क्या मूर्ख हैं जो और ज्यादा से ज्यादा अपराधियों को पकड़ अदालतों का बोझ बढ़ाएं। लिहाजा पुलिसवाले या तो अपराधियों को पकड़ते ही नहीं और पकड़ भी लें तो अदालत के बाहर ही मामला 'सैटल' कर उन्हें छोड़ दिया जाता है। अक्सर कहा जाता है कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं। हमारे पुलिसवाले भी ऐसा ही सोचते हैं। यही वजह है कि अपनी ज़ुबान और आचरण से वे हमेशा कोशिश करते हैं कि पुलिस और अपराधी में भेद ही खत्म कर दें। इस हद तक कि सुनसान रास्ते पर खूंखार बदमाश और पुलिसवाले को एक साथ देख लेने पर कोई भी लड़की बदमाश से यह गुहार लगाने लगती है- प्लीज, मुझे बचा लो, मेरी इज्जत को खतरा है। यही वजह है कि पुलिसवाले ऐसे शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं जो किसी और शब्दकोष में नहीं मिलते। सिर्फ इसलिए कि पुलिसवाले से पाला पड़ने के बाद अगर किसी का गुंडे-मवाली से संपर्क हो तो उसकी भाषाई संस्कारों को लेकर किसी को कोई शिकायत न हो। उल्टे लोग उसकी बात सुनकर यही पूछें कि क्या आप पुलिस में हैं?

                                                               हम सभी जानते हैं कि निर्भरता आदमी को कमजोर बनाती है। ये बात पुलिसवाले भी अच्छे से समझते हैं। यही वजह है कि वो चाहते हैं कि देश का हर आदमी सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बने। तभी तो सूचना मिलने के बावजूद हादसे की जगह न पहुंच, रात के समय पेट्रॉलिंग न कर, बहुत से इलाकों में खुद गुंडों को शह देकर, वो यही संदेश देना चाहते हैं कि सवारी अपनी जान की खुद जिम्मेदार है। सालों की मेहनत के बाद आज पुलिस महकमे ने अगर अपनी गैरजिम्मेदार छवि बनाई है तो सिर्फ इसलिए कि देश की जनता सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर हो पाए। हम भले ही ये मानते हों कि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है मगर पुलिस के मुताबिक वो हमारा निजी विषय है।
             अब आप ही बताइए, ऐसी पुलिस जो गरीब तबके को रोजगार मुहैया कराए, अदालतों का बोझ कम करे, सुरक्षा के मामले में जनता को आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा दे और अपराधियों के प्रति सामाजिक घृणा कम करने के लिए खुद अपराधियों-सा व्यवहार करे, प्रतिष्ठा की हकदार है या नहीं? आखिर हम उसे सम्मान कब देंगे?

देखो, असली बात




देखो, असली बात यह है कि इधर-उधर भटकना छोड़कर मूल तत्व को पकड़ो। इसी के साथ-साथ एक चीज और है कि जब हम जीवन के बाकी सब काम समझदारी और सोच-विचार से कर सकते हैं, तो फिर जीवन को ही क्यों बिना चिंतन के रहने दें? सिर्फ पन्ने पलटने के बदले हमें जीवन के अन्य कार्यों की तरह चिंतन भी करना चाहिए कि जो पढ़ा है या जो पढ़ रहे हैं, उसके पीछे क्या छिपा है?
                                        हम चाहे एक ही पंक्ति को पढ़ें, लेकिन उस एक पंक्ति को अपने जीवन में उतार लें तो उसे दोबारा पढ़ने की आवश्यकता नहीं रहेगी, वह जीवन का अंग बन जाएगी। जिस कार्य को आप बार-बार करते हैं, वह स्वाभाविक हो जाता है। उस काम में चिंतन नहीं करना पड़ता। लोग कहते हैं कि हम दो-तीन घंटे साधना करते हैं। यह ठीक है, अगर इतने समय जप-तप में बैठ सके तो। लेकिन अगर इतना नहीं बैठ सकते तो कम से कम पांच मिनट बैठे तो भी काफी है। लेकिन उस समय आप परमात्मा में खो जाएं। मन को संपूर्ण रूप से एकाग्र कर लें।
                                   हमारा मन इधर-उधर भटकता ही रहता है। सांसारिक तृष्णा से मुक्त होना ही सच्ची साधना है। सिर्फ गेरुए वस्त्र पहन लेने से साधना सफल नहीं हो जाती। जीवन में जो कुछ किया, उसे अब भूल जाओ। गई सो गई, जो बची है उसका चिंतन करो। अब आगे अपने मन का निरीक्षण करते रहिए। यह बड़ा ही चंचल है। बड़े- बड़े साधक भी इस पर काबू नहीं रख पाते। असल में इस मन को पहचानना होगा, परमात्मा ने इसे इतना शक्तिशाली बनाया है कि इसकी सहायता से हम साधना की अनेक सीढि़यां चढ़ सकते हैं। उसकी शक्ति का पूरा फायदा उठाना होगा। संसार में अगर कोई कामधेनु है तो वह हमारा मन ही है।
                                  हमारी पौराणिक कथाओं में बड़ा ही गहन उपदेश दिया गया है। इनकी कहानियों के माध्यम से हम जटिल बातों को भी सरलता से समझ सकते हैं। सवाल सिर्फ इतना है कि उन्हें अपने जीवन में कितना उतार पाते हैं। लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि कल्पवृक्ष की यह विशेषता है कि वह मनोवांछित फल की उपलब्धि कराता है। अगर आप अपने मन को कल्पवृक्ष मान लें तो आप इसके परिणाम को स्वयं देख सकेंगे। कितने विचित्र परिणाम देता है हमारा मन।
इसके बाद कहीं जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी, कुछ सुनने की आवश्यकता नहीं रहेगी। एक बार कहा हुआ ही बहुत हो जाएगा। हम बार-बार इसलिए सुनते हैं कि कहीं हमारा मन हमें धोखा न दे जाए। आप ही प्रश्न करने वाले होंगे और आप ही उत्तर देने वाले होंगे। एक ऐसी ज्योति आप के भीतर प्रकट होगी, जिसके आलोक में सब कुछ साफ- साफ दिखाई देगा।
हमारे सद्ग्रंथ हमारी आत्मशुद्घि के साधन है, उनका प्रयोजन हमारे अंत:करण को शुद्ध करना होता है। हम इसके निरंतर पठन से अपने मन की कमजोरियों को देख सकते हैं। मन की तरंग कभी भी रुकती नहीं है, एक इच्छा पूरी हुई तो दूसरी जागती है, इसलिए मन को निर्मल बना लो :






{कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर


प्रभु इसके पीछे फिरै कहत कबीर-कबीर।। }






अगर मन निर्मल हो गया तो फिर प्रभु हमारे प्रत्येक संकल्प को पूरा करेंगे। इससे भी आगे की एक स्थिति होती है, जिसका मैंने स्वयं अनुभव किया है, आप भी अनुभव कर सकते हैं। बस आप बिना शर्त परमात्मा के चरणों में समपिर्त हो जाइए। हम कहते तो हैं कि वही होता है जो मंजूरेखुदा होता है। लेकिन ऐसा तभी कहते हैं जब हारने लगते हैं। अगर पहले से ही स्वीकार कर लें कि जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिए। मैं वैसे ही रहूंगा, जैसे तू रखेगा। इसे मूलमंत्र बना लो फिर देखो, जीवन में आनंद ही आनंद होगा।
aksharma, lko का कहना है :मुझमें बहुत सी ऐसी बुराइयाँ है जिन्हें मैं आज तक बहुत यत्न करने के बाद भी छोड़ नहीं पाया हूं, पर यदि मै दूसरों को उन बुराइयों से दूर रहने की सलाह देता हूं तो इसमे क्या ग़लत है. दूसरे माने या न माने यह उनकी मर्ज़ी.

aksharma, lko का कहना है :मुझमें बहुत सी ऐसी बुराइयाँ है जिन्हें मैं आज तक बहुत यत्न करने के बाद भी छोड़ नहीं पाया हूं, पर यदि मै दूसरों को उन बुराइयों से दूर रहने की सलाह देता हूं तो इसमे क्या ग़लत है. दूसरे माने या न माने यह उनकी मर्ज़ी.

Chandra shekhar Singh, Sector-8D, B S City - 827009. का कहना है :ये बातें जो आपने दूसरे को सुनाई है उस पर आप कितना अमल करते हैं ज़रा यह भी तो सुना ही देते और अगर संभव हो तो कभी दिखा भी देते ताकि दूसरे लोगों को इस राह पर चलने में आसानी होती धन्यवाद

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

वेदों के अध्ययन के लिए भारत आए थे यीशू!

 एक ओर शुक्रवार को जहां पूरी दुनिया क्रिसमस का जश्न मना रही है वहीं दूसरी ओर ईसामसीह के भारत के साथ संपर्क के नए सूत्र तलाशने की कोशिश चल रही है। कुछ इतिहासकारों का विश्वास है कि ईसा ने अपने जीवन के शुरुआती 17 वर्ष भारत में बिताए थे। उन्होंने 13 से 30 वर्ष की उम्र तक यहां बौद्ध धर्म और वेदों का अध्ययन किया था।

ब्रितानी फिल्म निर्माता केंट वाल्विन ने कहा कि ईसा के परिवार (अभिभावक) के नैजैरिथ में रहने के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन जब उन्हें दूसरी बार नैजैरिथ में देखा गया, तब यीशु 30 वर्ष के थे। यीशु ने कहा था कि जितने साल वह गायब रहे उतने दिनों में उन्होंने बुद्धि और कद में विकास किया है।
                              कला, संस्कृति एवं शिक्षा के क्षेत्र में दिया जाने वाला साल 2009 का दयावती मोदी पुरस्कार लेने के लिए यहां आए वाल्विन की अगली फिल्म यंग जीसस: द मिसिंग ईयर्स होगी। इस फिल्म में यीशु के शुरुआती जीवन को प्रस्तुत किया जाएगा।
                                       वाल्विन के मुताबिक उनकी फिल्म एपोस्टोलिक गॉसपेल्स पर आधारित होगी। गॉसपेल्स के मुताबिक यीशु को 13-14 वर्ष की आयु में पश्चिम एशिया में अंतिम बार देखा गया था।
                                    फिल्मकार का कहना है कि फिल्म का पहला हिस्सा गोसपेल्स पर आधारित होगा और दूसरा हिस्सा पूरी तरह से अभिलेखीय सामग्री पर आधारित होगा। यीशु के भारत से संपर्क के कई संदर्भ मिलते हैं।                                                                                   
            एक रूसी चिकित्सक निकोलस नोतोविच ने 1894 में एक किताब द अननोन लाइफ ऑफ क्राइस्ट प्रकाशित की थी। यह किताब नोतोविच की अफगानिस्तान, भारत और तिब्बत यात्रा पर आधारित थी। उनकी इस किताब में कई ऐसे संदर्भ मिलते हैं जो बताते हैं कि यीशु भारत आए थे और बौद्ध धर्म और वेदों का अध्ययन किया था।
                   एक अन्य रूसी लेखक निकोलस रोइरिच का कहना है कि यीशु ने भारत के वाराणसी सहित कई प्राचीन शहरों में समय बिताया था। जर्मनी के विद्वान होल्जर क्रिस्टन की किताब जीसस लीव्ड इन इंडिया के मुताबिक यीशु ने सिंध में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था।

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शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

नयाए केसे केसे


तुम्हारी जोड़ी सलामत रहे ,मेरी दुआ सदा साथ रहे , में न्याय की देवी ,सम्मान भारत में मेरा सनातन धर्म चाहे कुछ भी कहे वर -वधु का अंतर मिटा दुगी भाई बहनों के आपस में ब्याह रचा दुगी जो मेरे आड़े आएगा जेल में वो जाये गा तू मत डरसनातन के विरुद्ध जो कहे गा ,वही भारत का कानून बन जाए गा

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

सनातन का अर्थ परिवर्तन भी हो सकता हे?

वेसे तो सनातन का अर्थ ही यही हे की जो जेसा हे जितना हे उतना और वेसा ही रहे दुसरे भाव में कहा जासकता हे की जो सच हे वही सनातन हे सच को किसी का अभाव नही होता ,झूठ का कोई एक पांव नही होता झूठ को सच साबित करना टेड़ी खीर के समान हो ता हे परन्तु सच को किसी परिवर्तन की आवश्यकता ही नही होती जेसे सूर्य प्रति दिन उदय होता हे असत्य हे बदल कभी कभी बेचारे को उदय ही नही होने देते सच तो यह हे की यदि सूर्य उदय ही न हो तो प्राणियों का जीवन -अस्तित्व खतरे में पड़ जाए गा अर्थात सूर्य उदय होता हे कहा जाता हे जो सच ही हे सत्य ही ईश्वर हे अर्थात ईश्वर ही सनातन हे और ईश्वर के द्वारा रचे गये धर्म नियम सनातन धर्म के सचे नियम हें शास्त्रीय -लोकिक शुभ की इछा करने वालों को इन दोनों का ही पालन करना चाहिए इनमेसे किसी का भी त्याग उचित नही होगा ग्राम धर्म-जाती धर्म-देश धर्म-कुल धर्म -सब का आदर करना चाहिए इस में किसी भी धर्म का उलंघन करना अनुचित हे क्यों की दुराचारी दुनिया में निंदा का पात्र होता हे उसे तो कष्ट भोगने ही होते हें मुसीबत उसका साथ नही छोड़ती ///\जो धर्म अर्थ कामसे हीन हों और धर्म भी लोक से विरुद्ध हो तो वह भी सुख करी नही हो सकता दुनिया में कई पवित्र शास्त्र हें किस के आधार पर निश्चय किया जावे ?धर्म मार्ग के निर्णय करने वाले कितने प्रमाण हें? जेसे वेदों का नेत्र ज्योतिष को मन जाता हे उसी प्रकार श्रुति -और -स्मृति ये दो नेत्र -पुराणको हृदय कहा गया हे इन तीनों कई वाणी ही धर्म हे एनी किसी कई नही यदि तीनो में पर्स पर भेद हो तो श्रुति के वचन प्रमाण होंगे यदि श्रुति और स्मृति दोनों में ही विरोध हो टीबी स्मृति को उतम माना jana चाहिए अब यदि श्रुति ही दोनों बैटन का स्म्र्त्न करती हो तभी उन दोनों को ही धर्म मनलेना चाहिए जब स्मृति में दो प्रकार के वचन मिलें तब उस विषय में अलग-अलग कल्पना कर लेनी चाहिए दूसरा सिधांत यह हे कई जिसे ऋषि गणधर्म कहते हें उसी को धर्म रूप से ग्रहण कर लिया जावे .........................................................?

गोत्रीय विवाह को मंजूरी या फिर सनातन धर्म पर प्रहार

खबर मिली की हरियाणा में एक ही गोत्र के प्रेमियों ने शादी रचली ; कोर्ट के आदेश से लड़का अपनी दुल्हन (जो समान गोत्र की हो ने से भाई बहनहुए )को लेने उस के गांव पुलिस सहित पहुच गया क्रोधित गांव वालों ने लडके सहित पुलिस को भी पीटा जिसमें लडके की मोत् होगयी लडके की मोत् ने एक बार फिर सभी दिल वालों को ज्क्झोड़ दिया दिल कांप उठा ,हे भगवान सनातन धर्म दो प्रेम करने वालों को ऐसी सजा देगा ?सोचा भी नही जा सकता परन्तु पश्न तो खडे हो ही गये ? सजातीय गोत्र में विवाह होना की भूल या गलती की इतनी बडी सजा ?क्या इस का यही प्रायश्चित कर्म बनता था ?या पंचायत का फेसला ही तालिबानी था ?क्या पंचायत दोनों को अलग करआजीवन अविवाहित का जीवन व्यतीत करने और हर रक्षा बंधन को एक दुसरे को राखी बाँधनेका हुक्म नही दे सकती थी ?इस से तो जो लोग सनातन धर्म के नियमों की अनदेखी करदेते हें कुछ सबक सिख लेते सर्व धर्म स्म भाव कहने वालीं सरकारें न्यायेयाले ऐसे न्याए कभी न करती जो सनातन धर्म की प्रतिष्ठा को चोट पहुचाते गे का फेसला भी आजादी का न हो कर इस बात को ध्यान में रख कर किया जाता की ऐसे गे लोगों को कोण सी सजा दी जावे जिन्हों ने स्नात्निष्ट रीती रिवाज से पतिपत्नी के सही रूप को बिगाडा नही हे पीर भी वो गे हें क्या कभी किसी न्याये धीश में ऐसी हिमत आ सकती हे की न्याये की कुर्सी पर बेठ कर पति - पत्नी के सदियों पुराने स्वरूप को बिगाड़ने की आज्ञा दे सनातन धर्म को तालिबानी ढंग से दबाने की चली आरही साजिशों का एक छोटा सा हिसा मात्र हे सनातन धर्म की जड़ जड़ को खोखला करने की साजिशों को भारत सरकार द्वारा संरक्ष्ण प्राप्त हे ?यही सनातन सत्य हे क्यों की गुर भाई गुर बहनों को पति-पत्नी के रूप में रह कर बचे पैदा करते देखा जा सकता हे भारत में बना सभी धर्मों के साथ न्याये हो का कानून ही सनातन धर्म के साथ न्याये नही कर रहा जो नये नये धर्म बन रहे हें उनके प्रति लगाव जो पुराना हे उसे क्यों दिया जावे उखाड?क्या यही न्याये हे ? क्यों भूल गये की नया दो दिन पुराना सो दिन

जच गये आप हमे ,जची आप की कविता हमने तो आप को रदी के टुकडों में से खोज निकला

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

पोंगा पंडित

पोंगे पंडित उल्टा सीधा बोल रहे हें ....................... । डर के दरवाजे जनता पे खोल रहे हें ....... उनकी बातें किसी का कब कल्याण करेंगी ... । अपने पैसों की जो तकड़ी तोल रहे हें ... । उन कमजोर दिलों पे इन का जोर चले हे ॥ । जिन के मन अंदर ही अंदर डोळ रहे हे .... । ज्योतिष विद्या अपने आप में गलत नही .... । गलत तो वो हें जो इस में विष् घोल रहे हें ... । कुदरत के इस खेल को उपर वाला ही जाने ... । उसकी नजर में :अंजुम:हम अनमोल रहे हें

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

मेरी मदद तो करो यारो क्या यह सच नही ?

चार वेद हर देश के हर व्यक्ति के कर्मों को किस प्रकार किया जाए बताते हें तथा पांचवां वेद जिस का कोई अस्तित्व नही हे परन्तु इन्ही चारों वेदों में यह हे इस को यदि देखा जावे तो हर धर्म जो सनातन धर्म से जुड़ाहुआ हे {जुदा नही हे }इसी पांचवें वेद का अनुसरण करते हें जेसे हिंदू ,मुस्लिम,सिख,इसाई ,चारों धर्म आपस में छोटे बडे भाई हो कर भी एक ही समान होते हें क्या इन चारों धर्मों ने कभी किसी को चोरी करने /व्यभिचार करने /झूठ बोलने /इर्षा करने /एक दुसरे से राग द्वेष रखने /गरीब कमजोर पर अत्या चार करने की शक्षा दी हे क्या इनमे से कोई किसी को गुमराह करना ,बचों बूढों ओरतों निह्थों और बेसहारा अनाथो को तंग करने या मारने की आज्ञा देता हे ?क्या इन्हों ने कभी किसी मनुष्य जीव प्राणी की रक्षा मदद करने से रो का हे जरा आज अपने आप में झांकें की हम चारों धर्म कहाँखडे हें --क्या हम सनातन से जुड़े हें या जुदा हें जो जुदा हे वो सनातन का केसे हो सकता हे ?जो जुडा हे वही सनातन धर्म का अनुसरण करता हे ऐसा व्यक्तित्व तो एक ही नजर आता हे जो उपरोक्त चारों धर्मों में देखा जा सकता हे सभी उसे भगत संत या फकीर के रूप में जानते हें
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