शनिवार, 18 अप्रैल 2009
सनातन पुरूष ईश्वर को कहा हे ,ईश्वर के धर्म को ही सनातन धर्म कहा जाता हे इश्वर का धर्म बिना किसी से भेद-भाव किए उस की हर जरूरत को पुरा करना होता हे वह हमारे प्रभु सब से शक्ति वाले होने से शक्तिवान ,अतिसुन्दर होने से रूपवान ,गुणों की खान होने से गुणवान ,रहमदिल होने से दयावान ,ऐश्वर्यवान ,हे इन्ही के आधार पर हमारी सभी जरूरतों को पुरा करने हेतु उन्हों ने हमेर लिए चार वेदों की रचनाकी ,जिस प्रकार किसी उपकरण को चलाने के लिए उसके साथ एक पस्तक मिलित हे और हम उस के निर्देशों को पड़ कर उस उपकरण का सदुपयोग करलेते हे उसी प्रकार अपने इस अमुल्यवान जन्म को केसे सफल बनावें जानने को इन चरों वेदों की शरण ग्रहण करनी पडती हे चरों वेदों का एक ही कथन हे की उसी इश्वर की शरण ग्रहण करो इस नियम को यदि सत्य मन जाए तो वेद मनुष्य के गुरु मने जायेगे इस वेद गुरु के द्वारा दींगई आज्ञाओं का पालन कर के मनुष्य सफल होजाता हे इसके उदाहरणों से हमारी पवित्र पुस्तके भरीं पडी हे सनातन धर्म के अनुरूप ही चरों धर्मों की प्वुत्र पुस्तकें परमात्मा ने रचीं १ हिंदू २मुस्लिम ३ सिख ४ इसाई ,पंचम वेद की रचना इन्ही चरों धर्मों की पवित्र पुस्तकों में निहित हे उन आज्ञाओं का जो पालन करते हे ,उन को फकीर कहा जाता हे फकीर ही एक मात्र ऐसा मनुष्य हे जो न हिंदू ,न मुसलमान ,न सिख और नाही इसाई ही होता हे और इन सभी धर्मों में पाया जाता हे इन फकीरों में एक समान फिक्र -फाका और सिदक के गुन भरे होते हे मनुष्यों में नही फिर मनुष्य को गुरु और फकीर केसे माना जा सकता हे?????????????????????///////////////////////
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